भारत और श्रीलंका के बीच के बंधन — "ভারত শ্রীলঙ্কা সম্পর্ক" — केवल भौगोलिक निकटता तक सीमित नहीं हैं; ये सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक और रणनीतिक रूप से जटिल रिश्ते हैं। इन रिश्तों की बारीकियों को समझने के लिए मैं अक्सर स्थानीय बाजारों, मंदिरों और तटीय गांवों की सैर के दौरान मिली बयानी कहानियों को याद करता/करती हूँ: कोलंबो के तेज़ धूप में बैठकर एक मछुआरे ने अपने और भारत के मछुआरों के बीच के पुराने समझ से जुड़ी व्यावहारिक चुनौतियाँ बताई थी — यही अनुभव इस रिश्ते की असल जमीनी सच्चाइयों को दर्शाता है।
इतिहास और सांस्कृतिक संबंध
भारत और श्रीलंका के रिश्तों की जड़ें प्राचीन काल में हैं। हिंदू और बौद्ध धर्मों के आदान-प्रदान, साहित्यिक और भाषाई संपर्कों ने दोनों समाजों को करीब रखा। महाभारत और रामायण की कथाएँ, बौद्ध तीर्थ स्थलों के यात्राओं से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों और श्रीलंका के बीच लगातार लोगों का आवागमन रहा है। इस साझा सांस्कृतिक विरासत ने समय-समय पर राजनैतिक और आर्थिक संपर्कों को मजबूती दी है।
आर्थिक और व्यापारिक कड़ी
व्यापार दोनों देशों के रिश्तों का एक बुनियादी स्तम्भ है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में पर्यटन, चाय, इलायची और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं, जबकि भारत एक बड़ा निर्यातक और निवेशक रहा है। हाल के दशकों में भारत ने श्रीलंका को विकास परियोजनाओं, ऋण-आधारित सहायता और तकनीकी सहयोग के माध्यम से सहयोग दिया है।
व्यापार असंतुलन और बाजार पहुंच की चुनौतियाँ दोनों पक्षों के लिए चिंताजनक रहीं, पर साथ ही छोटे और मध्यम व्यवसायों के बीच साझा अवसरों ने नए व्यापार मॉडल और साझेदारियों को जन्म दिया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि दोहरे बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स को जोड़ने पर दोनों देशों को दीर्घकालिक लाभ मिल सकते हैं।
सुरक्षा, समुद्री हित और क्षेत्रीय राजनीति
भारतीय महासागर में रणनीतिक महत्व इस साझेदारी को सुरक्षा आयाम देता है। समुद्री सुरक्षा, मानव तस्करी, समुद्री डकैती और प्राकृतिक आपदाओं के समय संचयनीय सहयोग — इन सभी में सहयोग जरूरी रहा है। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति इसे महानगरों के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनाती है और साथ ही बाहरी शक्तियों की दिलचस्पी के चलते क्षेत्रीय संतुलन पर प्रभाव पड़ता है।
इन संदर्भों में भारत ने लगातार द्विपक्षीय रक्षा और समुद्री सहभागिता बढ़ाई है: समुद्री अभ्यास, बंदरगाह विकास के सहयोग और आपदा प्रबंधन सहयोग के माध्यम से भरोसा बढ़ा है। परन्तु, बड़ी परियोजनाओं के मसले (जैसे कुछ वर्षों में उठे बंदरगाह और निवेश के मुद्दे) पर पारदर्शिता और स्थानीय संवेदनशीलता बनाए रखना आवश्यक है।
लोगों से लोगों का जुड़ाव और प्रवासन
व्यक्तिगत रिश्तों और मानव संपर्कों ने "ভারত শ্রীলঙ্কা সম্পর্ক" को जीवंत बनाए रखा है। तमिल समुदायों के ऐतिहासिक जुड़ाव, शिक्षा और रोजगार के लिए सीमापार जाने वाले लोग, परिवारिक रिश्ते और सांस्कृतिक कार्यक्रम—ये सभी पक्ष दोनों देशों के बीच स्थायी सामाजिक सेतु हैं।
आनुभव के तौर पर, मैंने चेन्नई से कांचना सेतु पार कर के श्रीलंकाई कलाकारों के साथ मंच साझा किया; भाषाई विविधता के बावजूद संगीत और खाना आसानी से संबंधों को गहरा करते हैं। ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ दीर्घकालिक दोस्ती और विश्वास बनाती हैं जो औपचारिक कूटनीति से परे जाती हैं।
समुद्री मछलियों और तटीय समुदायों के मुद्दे
तटीय समुदायों के बीच मछली पकड़ने के अधिकार एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। सीमाओं की अस्पष्टता, जल संसाधनों पर दबाव और पारंपरिक मछुआरे के अधिकारों की रक्षा—यह सभी मुद्दे स्थानीय स्तर पर परस्पर तनाव पैदा करते हैं। इन चुनौतियों के समाधान के लिए पारस्परिक बातचीत, संसाधन साझा करने के मानचित्र और लोक-आधारित समझौते आवश्यक हैं।
नवीनतम प्रवृत्तियाँ और सहयोग के क्षेत्र
- डिजिटल और तकनीकी सहयोग: शिक्षा, दूरसंचार और इंफ्रा के क्षेत्र में डिजिटल साझेदारी बढ़ रही है।
- पर्यटन पुनरुद्धार: कोविड-समय के बाद दोनों देशों के पर्यटन सहयोग में नयापन और अनुभव आधारित टूरिज्म पर जोर है।
- ऊर्जा और हरित परियोजनाएँ: अक्षय ऊर्जा और हरित निवेश के साझा अवसर पर चर्चा बढ़ी है।
- बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: सड़क, रेल और बंदरगाह क्षेत्र में आपसी निवेश और तकनीकी भागीदारी जारी है।
व्यवहारिक सुझाव और नीति की प्राथमिकताएँ
उत्तम द्विपक्षीय समझ के लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव मैंने क्षेत्रीय प्रोजेक्ट्स और समुदायों के साथ काम करते हुए निकाले हैं:
- स्थानीय समुदायों को निर्णय-प्रक्रिया में शामिल करना — खासकर तटीय संवेदनशील परियोजनाओं में।
- छोटे व्यापारों और कारीगरों के लिए आसान बाजार पहुँच बनाना ताकि आम लोगों को भी आर्थिक लाभ मिले।
- ट्रांसपरेंसी और दीर्घकालिक वित्तीय मॉडल—बड़े निवेशों में शर्तों को स्पष्ट और टिकाऊ बनाना।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना; युवा पीढ़ी के बीच समझ व भरोसा गहरा करना।
चुनौतियाँ और संवेदनशीलताएँ
हर रिश्ते की तरह, भारत और श्रीलंका के बीच भी कुछ जटिल मुद्दे हैं: आंतरिक राजनीति के उतार-चढ़ाव, बाहरी शक्तियों की भागीदारी, आर्थिक दबाव और स्थानीय गतिशीलताएँ। इन सबको समझकर संवेदनशील, सम्मानजनक और समावेशी नीति बनानी होगी।
निजी अनुभव से सीख
कई बार मैं स्थानीय चाय बागानों और तटीय गांवों में बैठकर स्थानीय लोगों से सुनता/सुनती रहा/रही हूँ — उनकी जीवनशैली, आशाएँ और डर। इन बातचीत से स्पष्ट होता है कि राजनैतिक बयानबाज़ी से परे, सबसे ज़रूरी है रोज़मर्रा की जिंदगी में स्थिरता और अवसर। जब सड़कें, स्कूल और बाजार संभावनाएँ देते हैं, तो रिश्ते मजबूत होते हैं। यही व्यावहारिक आधार "ভারত শ্রীলঙ্কা সম্পর্ক" को टिकाऊ बना सकता है।
निष्कर्ष
भारत और श्रीलंका के बीच के रिश्ते विविध और बहु-आयामी हैं। इतिहास, संस्कृति, व्यापार, सुरक्षा और लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों ने मिलकर इस रिश्ते को आकार दिया है। आगे बढ़ने के लिए पारदर्शिता, स्थानीय सहभागिता, और दीर्घकालिक दृष्टि आवश्यक है। यदि हम इन सिद्धांतों पर टिके रहे, तो "ভারत শ্রীলঙ্কা সম্পর্ক" सिर्फ एक डिप्लोमैटिक टेक्स्ट नहीं रहेगा—बल्कि दोनों देशों के आम लोगों के लिए समृद्धि और भरोसे की वास्तविक कहानी बन जाएगा।
और अधिक विस्तार और संसाधनों के लिए आप इस लिंक पर भी देख सकते हैं: ভারত শ্রীলঙ্কা সম্পর্ক.